इस शाम वो सर में दर्द सहना उस का
मैं पास हुआ तो दूर रहना उस का
मुझ से ज़रा शर्मा के ''तबीअत मेरी
कुछ आज है ना-साज़'' ये कहना उस का
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हाँ जुमला फ़नून-ए-ज़िंदगानी सीखे
लिक्खे हैं फ़क़ीर ने जो शाही अल्फ़ाज़
इक बोलती सूरत का नमूना क्या है
तू है कि एलोरा की कोई मूर्ती है
घर लौह का आबाद किया है ऐ दोस्त
उस हस्ती-ए-मंजली से विर्से में मिला
हम साँप पकड़ लेते हैं बीनों के बग़ैर
दिल्ली से वो जा रहा था जिस दम क़ंधार
हर हर्फ़ में मह-पारों के क़द बनते हैं
तहसीन के तोहफ़े मुझे 'साइब' देता
मेहराब की परछाइयाँ तड़पाती हैं