हम साँप पकड़ लेते हैं बीनों के बग़ैर
फ़सलें भी उगाते हैं ज़मीनों के बग़ैर
हम अहल-ए-करामात का लेकिन यारो
दिल ही नहीं लगता है हसीनों के बग़ैर
Rahat Indori
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1339) Peoples Rate This
शागिर्द किसी का हूँ न उस्ताद हूँ मैं
शब मेरी थी शाम मेरी दिन था मेरा
वो जिस को मोहब्बत की रविश कहते हैं
फूलों की मिली बल्ख़ से थाली मुझ को
ज़ाहिर है रुबाई में मिरी दम क्या है
गर अपनी सना आम नहीं दुनिया में
हाँ मफ़्ती-ए-शहर ने फ़तवे भेजे
उन की तो ये इरफ़ानी मनाज़िल में से है
हाँ जुमला फ़नून-ए-ज़िंदगानी सीखे
सच्चाई पे इक निगाह कर लूँ या-रब
तहसीन के तोहफ़े मुझे 'साइब' देता