रात गुज़रे न दर्द-ए-दिल ठहरे
कुछ तो बढ़ जाए कुछ तो घट जाए
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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कोई नहीं आता समझाने
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
ये आलाम-ए-हस्ती ये दौर-ए-ज़माना
क़रीब मौत खड़ी है ज़रा ठहर जाओ
तुम्हारे ब'अद ख़ुदा जाने क्या हुआ दिल को
बड़े ख़तरे में है हुस्न-ए-गुलिस्ताँ हम न कहते थे
लुत्फ़ फ़रमा सको तो आ जाओ
चैन अब मुझ को तह-ए-दाम तो लेने देते
अब वो सौदा नहीं दीवानों में
एक उदासी दिल पर छाई रहती है
हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
ऐसे लम्हे भी गुज़ारे हैं तिरी फ़ुर्क़त में