तुम को बेगाने भी अपनाते हैं मैं जानता हूँ
मेरे अपने भी पराए हैं तुम्हें क्या मालूम
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आए थे उन के साथ नज़ारे चले गए
आज की रात वो आए हैं बड़ी देर के ब'अद
एक उदासी दिल पर छाई रहती है
कुछ तो रंगीनी-ए-अफ़कार खुले
फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं
शोर दिन को नहीं सोने देता
दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो
एक से एक है ग़ारत-गर-ए-ईमान यहाँ
हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
कोई नहीं आता समझाने
छुप छुप के अब न देख वफ़ा के मक़ाम से