मैं चाहता हूँ उसे और चाहने के सिवा
मिरे लिए तो कोई और रास्ता भी नहीं
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दिल में रक्खे हुए आँखों में बसाए हुए शख़्स
शाम से गहरा चाँद से उजला एक ख़याल
ये तो दुनिया भी नहीं है कि किनारा कर ले
यकजाई से पल भर की ख़ुद-आराई भली थी
गुज़र चली है शब-ए-दिल-फ़िगार आख़िरी बार
बहुत दिनों में मिरे घर की ख़ामोशी टूटी
तेरी शिकस्त अस्ल में मेरी शिकस्त है
हिसाब-ए-तर्क-तअल्लुक़ तमाम मैं ने किया
ऐसा है कि सिक्कों की तरह मुल्क-ए-सुख़न में
उन से भी मेरी दोस्ती उन से भी रंजिशें
मता-ए-हर्फ़ भी ख़ुश्बू के मा-सिवा क्या है
ये मेरी काग़ज़ी कश्ती है और ये मैं हूँ