ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर

ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर

ऐ हम-नशीं यहाँ कोई महरम तलब न कर

किन हिजरतों के बा'द हुआ है ये मो'तबर

परवरदिगार मुझ से मिरा ग़म तलब न कर

कुछ और ज़ख़्म खा कि मिले मंज़िल-ए-मुराद

लम्हों से अपने ज़ख़्म का मरहम तलब न कर

ऐ दिल किसी से मिल के बिछड़ने में फ़ाएदा

मुज़्मर है जो विसाल में वो सम तलब न कर

टकरा न मुझ को मेरी अना के पहाड़ से

मेरे लिए वो साअ'त-ए-बरहम तलब न कर

(633) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sultan Rashk. is written by Sultan Rashk. Complete Poem in Hindi by Sultan Rashk. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.