फिर जो करने लगा है तू व'अदा
क्या मुकरने का फिर इरादा है
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मकाँ से होगा कभी ला-मकान से होगा
हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं
वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है
मोती नहीं हूँ रेत का ज़र्रा तो मैं भी हूँ
ख़ुशी ज़रूर थी 'तैमूर' दिन निकलने की
ज़िंदगी जंग है आसाब की और ये भी सुनो
मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है
हिज्र बख़्शा कभी विसाल दिया
मुझ को कहानियाँ न सुना शहर को बचा
ये जंग जीत है किस की ये हार किस की है
सफ़र में होती है पहचान कौन कैसा है