इंकार भी करने का बहाना नहीं मिलता
इक़रार भी करने का मज़ा देख रहे हैं
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(657) Peoples Rate This
वो एक लम्हा जिसे तुम ने मुख़्तसर जाना
किस की आँखों का नशा है कि मिरे होंटों को
ये शहर अपनी इसी हाव-हू से ज़िंदा है
आहिस्ता-रवी शहर को काहिल न बना दे
तो क्यूँ इस बार उस ने मेरे आगे सर झुकाया है
दर्द-आमेज़ है कुछ यूँ मिरी ख़ामोशी भी
न बे-कली का हुनर है न जाँ-फ़ज़ाई का
बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
हम जब्र-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ नहीं होते
सफ़र ही बस कार-ए-ज़िंदगी है