अक्सर मिरे शेरों की सना करते रहे हैं
वो लोग जो ग़ालिब के तरफ़-दार नहीं हैं
Ahmad Faraz
Gulzar
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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यूँ भी तो तिरी राह की दीवार नहीं हैं
ये तेरा दिवाना रात गए मालूम नहीं क्यूँ पहरों तक
न बे-कली का हुनर है न जाँ-फ़ज़ाई का
उसे कहाँ हमें क़ैदी बना के रखना था
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
नज़ारगी-ए-शौक़ ने दीदार में खींचा
सफ़र ही बस कार-ए-ज़िंदगी है
किस की आँखों का नशा है कि मिरे होंटों को
दर्द-आमेज़ है कुछ यूँ मिरी ख़ामोशी भी
आहिस्ता-रवी शहर को काहिल न बना दे
नई ज़मीनों को अर्ज़-ए-गुमाँ बनाते हैं