इस तरह तुझे इश्क़ किया है कि ये दुनिया
हम को ही कहीं इश्क़ का हासिल न बना दे
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अक्सर मिरे शेरों की सना करते रहे हैं
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
नज़ारगी-ए-शौक़ ने दीदार में खींचा
सवाल क्या है जवाब क्या है
यूँ भी तो तिरी राह की दीवार नहीं हैं
ख़िरद नहीं है यहाँ बस जुनून का सौदा
तो क्यूँ इस बार उस ने मेरे आगे सर झुकाया है
इंकार भी करने का बहाना नहीं मिलता
दर्द-आमेज़ है कुछ यूँ मिरी ख़ामोशी भी
हम हिज्र के रस्तों की हवा देख रहे हैं
आहिस्ता-रवी शहर को काहिल न बना दे