तो क्यूँ इस बार उस ने मेरे आगे सर झुकाया है
उसे तो आज भी मुश्किल न था इंकार कर देना
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दर्द-आमेज़ है कुछ यूँ मिरी ख़ामोशी भी
इस तरह तुझे इश्क़ किया है कि ये दुनिया
बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना
किस की आँखों का नशा है कि मिरे होंटों को
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
नज़ारगी-ए-शौक़ ने दीदार में खींचा
इंकार भी करने का बहाना नहीं मिलता
ये शहर अपनी इसी हाव-हू से ज़िंदा है
सफ़र ही बस कार-ए-ज़िंदगी है
ये तेरा दिवाना रात गए मालूम नहीं क्यूँ पहरों तक
वो एक लम्हा जिसे तुम ने मुख़्तसर जाना