सितारे Poetry (page 10)

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे

हबीब जालिब

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे

हबीब जालिब

हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में

हबीब जालिब

तमाम रात बुझेंगे न मेरे घर के चराग़

हबाब तिर्मिज़ी

ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रक्खे हुए हैं

गुलज़ार बुख़ारी

आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में

गुलनार आफ़रीन

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

शब-ताब

गोपाल मित्तल

बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

समीता-पाटिल

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ये सच है मेरी सदा ने रौशन किए हैं मेहराब पर सितारे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

क़र्या-ए-हैरत में दिल का मुस्तक़र इक ख़्वाब है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

किसी को ज़हर दूँगा और किसी को जाम दूँगा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइना-आसा ये ख़्वाब-ए-नीलमीं रक्खूँगा मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

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