इश्क़ बीनाई बढ़ा देता है
जाने क्या क्या नज़र आता है मुझे
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रात भर बर्फ़ गिरती रही है
दाग़ होने लगे ज़ाहिर मेरे
ये सदा काश उसी ने दी हो
ज़र्रों की बातों में आने वाला था
घर में वही पीली तन्हाई रहती है
उसे छुआ ही नहीं जो मिरी किताब में था
दश्त की ख़ाक भी छानी है
अब रवानी से है नजात मुझे
मंज़िलों से भी आगे निकलता हुआ
न हम-सफ़र है न हम-नवा है
कोई उस के बराबर हो गया है
मुद्दतें हो गईं हिसाब किए