इरादा तो नहीं है ख़ुद-कुशी का
मगर मैं ज़िंदगी से ख़ुश नहीं हूँ
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हवा बहने लगी मुझ में
ऐसी प्यास और ऐसा सब्र
ज़िंदगी की हँसी उड़ाती हुई
हाथ पर हाथ रख के क्यूँ बैठूँ
घर में वही पीली तन्हाई रहती है
तू भी नाराज़ बहुत है मुझ से
यहाँ तक कर लिया मसरूफ़ ख़ुद को
मंज़िलों से भी आगे निकलता हुआ
जुनूँ की पैरवी से ख़ुश नहीं हूँ
देखना चाहता हूँ गुम हो कर
रात भर बर्फ़ गिरती रही है
में अदम की पनाह-गाह में हूँ