ऐसी प्यास और ऐसा सब्र
दरिया पानी पानी है
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न हम-सफ़र है न हम-नवा है
फ़िक्र का कारोबार था मुझ में
मुद्दतें हो गईं हिसाब किए
मुझ को अक्सर उदास करती है
फ़सील-ए-शब पे तारों ने लिखा क्या
घर में वही पीली तन्हाई रहती है
बारिश में अक्सर ऐसा हो जाता है
अब रवानी से है नजात मुझे
अज़ल से बंद दरवाज़ा खुला तो
ज़िंदगी की हँसी उड़ाती हुई
फिर वही शब वही सितारा है
दश्त की ख़ाक भी छानी है