देखना चाहता हूँ गुम हो कर
क्या कोई ढूँड के लाता है मुझे
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कौन तहलील हुआ है मुझ में
यहाँ तक कर लिया मसरूफ़ ख़ुद को
इरादा तो नहीं है ख़ुद-कुशी का
ये सदा काश उसी ने दी हो
फिर वही शब वही सितारा है
एक किरन फिर मुझ को वापस खींच गई
कोई उस के बराबर हो गया है
जिसे देखो ग़ज़ल पहने हुए है
मोहब्बत के आदाब सीखो ज़रा
एक बरस और बीत गया
मंज़िलों से भी आगे निकलता हुआ
मेरी कोशिश तो यही है कि ये मा'सूम रहे