एक किरन फिर मुझ को वापस खींच गई
में बस जिस्म से बाहर आने वाला था
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(485) Peoples Rate This
बला का हब्स था पर नींद टूटती ही न थी
यहाँ तक कर लिया मसरूफ़ ख़ुद को
रात भर बर्फ़ गिरती रही है
इरादा तो नहीं है ख़ुद-कुशी का
अज़ल से बंद दरवाज़ा खुला तो
ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर
जिसे देखो ग़ज़ल पहने हुए है
दश्त की ख़ाक भी छानी है
दाग़ होने लगे ज़ाहिर मेरे
देखना चाहता हूँ गुम हो कर
मैं तो किसी जुलूस में गया नहीं