जो सुनना चाहो तो बोल उट्ठेंगे अँधेरे भी
न सुनना चाहो तो दिल की सदा सुनाई न दे
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
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Wasi Shah
Rahat Indori
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Anwar Masood
Gulzar
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तवाना ख़ूबसूरत जिस्म
ठहरी है तो इक चेहरे पे ठहरी रही बरसों
हर एक लम्हा किया क़र्ज़ ज़िंदगी का अदा
हम को मंज़ूर तुम्हारा जो न पर्दा होता
हज़ारों साल सफ़र कर के फिर वहीं पहुँचे
कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले
अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे
आगही की दुआ
उम्र को करती हैं पामाल बराबर यादें
रात भर ख़्वाब के दरिया में सवेरा देखा
अब्र आँखों से उठे हैं तिरा दामन मिल जाए
पत्थरों का मुग़न्नी