फिर मेरी ख़बर लेने वो सय्याद न आया
शायद कि मिरा हाल उसे याद न आया
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इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है
चाहता है इस जहाँ में गर बहिश्त
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले
हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता
आशिक़ के मुख पे नैन के पानी को देख तूँ
जामा-ज़ेबों को क्यूँ तजूँ कि मुझे
भड़के है दिल की आतिश तुझ नेह की हवा सूँ
किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता
आज तुझ याद ने ऐ दिलबर-ए-शीरीं-हरकात
गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे