राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
ता क़यामत खुला है बाब-ए-सुख़न
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अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले
सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो
तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ
हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं
याद करना हर घड़ी उस यार का
हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता
इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है
देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
जामा-ज़ेबों को क्यूँ तजूँ कि मुझे