वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया
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हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए
तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को
मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो
दूसरों को मिटाने की धुन में
'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़
भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
आते आते मिरा नाम सा रह गया
उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
मैं जिन दिनों तिरे बारे में सोचता हूँ बहुत
वह जानते ही नहीं
मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला