वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता
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कहाँ क़तरे की ग़म-ख़्वारी करे है
उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है
तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा
कोई इशारा दिलासा न कोई व'अदा मगर
ख़त्म कब हो ये कुछ नहीं मालूम
रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
यूँ लगे तेरे तज़्किरा से अगर