कोई इशारा दिलासा न कोई व'अदा मगर
जब आई शाम तिरा इंतिज़ार करने लगे
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Wasi Shah
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सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर पर
वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
कहाँ क़तरे की ग़म-ख़्वारी करे है
अब भी इक लब में और तबस्सुम में
यही बज़्म-ए-ऐश होगी यही दौर-ए-जाम होगा
मेरी तन्हाइयाँ भी शाएर हैं
मैं ने चाहा है तुझे आम से इंसाँ की तरह
अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है