वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी
किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता
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दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम'
तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
तमाम उम्र बड़े सख़्त इम्तिहान में था
हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
मुझे बुझा दे मिरा दौर मुख़्तसर कर दे
मैं उस को पूज तो सकता हूँ छू नहीं सकता
अपने साए को इतना समझाने दे
फूल ख़ुद अपने हुस्न में गुम है
वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
तेरी याद