ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम'
अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं
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अब भी इक लब में और तबस्सुम में
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
रख देता है ला ला के मुक़ाबिल नए सूरज
तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा
सफ़र पे आज वही कश्तियाँ निकलती हैं
चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है
वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आता
वह जानते ही नहीं