दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
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वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था
तिरे ख़याल के हाथों कुछ ऐसा बिखरा हूँ
अपने अंदाज़ का अकेला था
शहर मेरा
उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया
नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया
मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके
दूसरों को मिटाने की धुन में
जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है
दीवाने की जन्नत
दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
यही बज़्म-ए-ऐश होगी यही दौर-ए-जाम होगा