तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा
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ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
तुझ से बिछड़ा तो सोचता हूँ मैं
शहर मेरा
ख़्वाब नहीं देखा है
झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
फूल ख़ुद अपने हुस्न में गुम है
आते आते मिरा नाम सा रह गया
रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए
मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है
फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं
तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल