झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया
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मैं जिन दिनों तिरे बारे में सोचता हूँ बहुत
वह जानते ही नहीं
'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़
ख़्वाब नहीं देखा है
सभी रिश्ते गुलाबों की तरह ख़ुशबू नहीं देते
तमाम उम्र बड़े सख़्त इम्तिहान में था
अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है
दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है
वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए