झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा
Gulzar
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Rahat Indori
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मुझे पढ़ता कोई तो कैसे पढ़ता
अब भी इक लब में और तबस्सुम में
उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले
उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया
अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है
मेरी तन्हाइयाँ भी शाएर हैं
अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे
चाँद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है
ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है
'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
वो मुझ को क्या बताना चाहता है