जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
ख़ाक समझेगा मुसव्विर तिरी अंगड़ाई को
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
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नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया
वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है
मैं उस को आँसुओं से लिख रहा हूँ
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता
'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़
तुझ से बिछड़ा तो सोचता हूँ मैं
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर पर
तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को
मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो