किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर पर
मिरे अंदर कोई बच्चा बिलक कर रोने लगता है
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क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम'
न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है
तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ
जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं
ख़त्म कब हो ये कुछ नहीं मालूम
'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़
सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया