तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ
हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है
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जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
दीवाने की जन्नत
बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें
'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़
होंटों को रोज़ इक नए दरिया की आरज़ू
जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से
ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है
न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
इसी ख़याल से पलकों पे रुक गए आँसू
सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
तेरी याद