उन से कह दो मुझे ख़ामोश ही रहने दे 'वसीम'
लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी
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सफ़र पे आज वही कश्तियाँ निकलती हैं
इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे
वो ग़म अता किया दिल-ए-दीवाना जल गया
इसी ख़याल से पलकों पे रुक गए आँसू
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है
चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
मेरी तन्हाइयाँ भी शाएर हैं
मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है
न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है
रख देता है ला ला के मुक़ाबिल नए सूरज