मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है
कि ये आँसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते
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दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
मेरी तन्हाइयाँ भी शाएर हैं
दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ
वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था
इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे
सिर्फ़ तेरा नाम ले कर रह गया
चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए
मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला