ख़त्म कब हो ये कुछ नहीं मालूम
हर नफ़स पर है मौत का ख़तरा
ज़िंदगी इस तरह है दुनिया में
जैसे काँटे पे ओस का क़तरा
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Javed Akhtar
Allama Iqbal
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वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी
तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता
बेबसी
हम ये तो नहीं कहते कि हम तुझ से बड़े हैं
मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके
दीवाने की जन्नत
रख देता है ला ला के मुक़ाबिल नए सूरज
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो
तुझ से बिछड़ा तो सोचता हूँ मैं
फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं