हम ये तो नहीं कहते कि हम तुझ से बड़े हैं
लेकिन ये बहुत है कि तिरे साथ खड़े हैं
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(707) Peoples Rate This
मुझे बुझा दे मिरा दौर मुख़्तसर कर दे
मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी
मेरा किया था मैं टूटा कि बिखरा रहा
वो ग़म अता किया दिल-ए-दीवाना जल गया
ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला
उन से कह दो मुझे ख़ामोश ही रहने दे 'वसीम'
जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है
दर-ब-दर सर झुकाए फिरता है
मैं उस को आँसुओं से लिख रहा हूँ
मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो