मैं उस को पूज तो सकता हूँ छू नहीं सकता
जो फ़ासलों की तरह मेरे साथ रहता है
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सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मुझे बुझा दे मिरा दौर मुख़्तसर कर दे
मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके
मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया
मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता
ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है
तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
मैं ने चाहा है तुझे आम से इंसाँ की तरह