मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया
उस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता
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दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो
मोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझें
न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है
वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था
लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता
मिटे वो दिल जो तिरे ग़म को ले के चल न सके
मौत के ब'अद भी तो चलता है
उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले
मुझे बुझा दे मिरा दौर मुख़्तसर कर दे
हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए
हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
तिरे ख़याल के हाथों कुछ ऐसा बिखरा हूँ