कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता
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सफ़र पे आज वही कश्तियाँ निकलती हैं
मैं ये नहीं कहता कि मिरा सर न मिलेगा
मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता
ख़त्म कब हो ये कुछ नहीं मालूम
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मुझे पढ़ता कोई तो कैसे पढ़ता
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
तमाम उम्र बड़े सख़्त इम्तिहान में था
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता
दूसरों को मिटाने की धुन में
तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को