रौ में आए तो वो ख़ुद गर्मी-ए-बाज़ार हुए
हम जिन्हें हाथ लगा कर भी गुनहगार हुए
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(927) Peoples Rate This
न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया
वो मुझ से अपना पता पूछने को आ निकले
मैं डूबता जज़ीरा था मौजों की मार पर
मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग लेता हूँ
ख़ुदा को मान कि तुझ लब के चूमने के सिवा
सुना है वो मिरे बारे में सोचता है बहुत
अभी तो करना पड़ेगा सफ़र दोबारा मुझे
इस बार मिली है जो नतीजे में बुराई
देखो तो कुछ ज़ियाँ नहीं खोने के बावजूद
आज कल उस की तरह हम भी हैं ख़ाली ख़ाली
अभी आँखें खुली हैं और क्या क्या देखने को
न जाने क्यूँ मिरी निय्यत बदल गई यक-दम