रखता हूँ अपना आप बहुत खींच-तान कर
छोटा हूँ और ख़ुद को बड़ा करने आया हूँ
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जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता
अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है
अपनी ये शान-ए-बग़ावत कोई देखे आ कर
मेरी सूरज से मुलाक़ात भी हो सकती है
कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था
'ज़फ़र' ज़मीं-ज़ाद थे ज़मीं से ही काम रक्खा
ये नहीं कहता कि दोबारा वही आवाज़ दे
कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे
दरिया दूर नहीं और प्यासा रह सकता हूँ
छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया
ये भी मुमकिन है कि आँखें हों तमाशा ही न हो
चलो इतनी तो आसानी रहेगी