आगे चल के तो कड़े कोस हैं तन्हाई के
और कुछ दूर तलक लुत्फ़-ए-सफ़र है ये भी
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मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे
कुछ दूर तक तो चमकी थी मेरे लहू की धार
ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरह
मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था
सूरज ने इक नज़र मिरे ज़ख़्मों पे डाल के
महकती ज़ुल्फ़ों से ख़ोशे गुलों के छूट गिरे
अब मुझ से ये दुनिया मिरा सर माँग रही है
तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं
टूटती रहती है कच्चे धागे सी नींद
किस ने सहरा में मिरे वास्ते रक्खी है ये छाँव
बे-कराँ दश्त-ए-बे-सदा मेरे
ढूँढती फिरती हैं जाने मिरी नज़रें किस को