अधूरी छोड़ के तस्वीर मर गया वो 'ज़ेब'
कोई भी रंग मयस्सर न था लहू के सिवा
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1428) Peoples Rate This
खुली छतों से चाँदनी रातें कतरा जाएँगी
न जाने क्या है कि जब भी मैं उस को देखता हूँ
रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल हो
उजड़ी हुई बस्ती की सुब्ह ओ शाम ही क्या
'ज़ेब' मुझे डर लगने लगा है अपने ख़्वाबों से
हो चुके गुम सारे ख़द्द-ओ-ख़ाल मंज़र और मैं
दिन है बे-कैफ़ बे-गुनाहों सा
बे-कराँ दश्त-ए-बे-सदा मेरे
बुझ कर भी शो'ला दाम-ए-हवा में असीर है
बुझते सूरज ने लिया फिर ये सँभाला कैसा
शहर में हम से कुछ आशुफ़्ता-दिलाँ और भी हैं
जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना