दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता
शायद ही कभी मैं ने तुझे याद किया हो
Rahat Indori
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(943) Peoples Rate This
संग-ए-बेहिस से उठी मौज-ए-सियह-ताब कोई
उस की राहों में पड़ा मैं भी हूँ कब से लेकिन
महकती ज़ुल्फ़ों से ख़ोशे गुलों के छूट गिरे
तूफ़ाँ में नाव आई तो क्या सम्त क्या निशाँ
कम रौशन इक ख़्वाब आईना इक पीला मुरझाया फूल
ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए
खुली छतों से चाँदनी रातें कतरा जाएँगी
और गुलों का काम नहीं होता कोई
कुछ दूर तक तो चमकी थी मेरे लहू की धार
तेरे सामने आते हुए घबराता हूँ
मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे
जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है