मैं ने देखा था सहारे के लिए चारों तरफ़
कि मिरे पास ही इक हाथ भँवर से निकला
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(837) Peoples Rate This
वो मेरे सामने ख़ंजर-ब-कफ़ खड़ा था 'ज़ेब'
लहर लहर क्या जगमग जगमग होती है
जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना
बड़े अज़ाब में हूँ मुझ को जान भी है अज़ीज़
घसीटते हुए ख़ुद को फिरोगे 'ज़ेब' कहाँ
नक़्श-ए-तस्वीर न वो संग का पैकर कोई
ढूँढती फिरती हैं जाने मिरी नज़रें किस को
दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता
अब तक तो किसी ग़ैर का एहसाँ नहीं मुझ पर
तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं
मैं तो चाक पे कूज़ा-गर के हाथ की मिट्टी हूँ
मुझ से बिछड़ कर होगा समुंदर भी बेचैन