ज़ख़्म ही तेरा मुक़द्दर हैं दिल तुझ को कौन सँभालेगा
ऐ मेरे बचपन के साथी मेरे साथ ही मर जाना
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दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता
कम रौशन इक ख़्वाब आईना इक पीला मुरझाया फूल
अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का
लहू में तैरता फिरता है मेरा ख़स्ता बदन
इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी
कहीं पता न लगा फिर वजूद का मेरे
जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है
तूफ़ाँ में नाव आई तो क्या सम्त क्या निशाँ
मिरी जगह कोई आईना रख लिया होता
मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया
मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे
अधूरी छोड़ के तस्वीर मर गया वो 'ज़ेब'