ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला
मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ
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जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है
इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी
फिर एक नक़्श का नैरंग 'ज़ेब' बिखरेगा
मौज़ू-ए-सुख़न हिम्मत-ए-आली ही रहेगी
अब मुझ से ये दुनिया मिरा सर माँग रही है
गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत
है बहुत ताक़ वो बेदाद में डर है ये भी
अब तक तो किसी ग़ैर का एहसाँ नहीं मुझ पर
चमक रहा है ख़ेमा-ए-रौशन दूर सितारे सा
ये कम है क्या कि मिरे पास बैठा रहता है
तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं
न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है