तुम्हारे आशिक़ों में बे-क़रारी क्या ही फैली है
जिधर देखो जिगर थामे हुए दो-चार बैठे हैं
Gulzar
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मुश्किल का सामना हो तो हिम्मत न हारिए
तेरी जानिब से मुझ पे क्या न हुआ
अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा
जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है
अपने दर से जो उठाते हैं हमें
रोते हैं सुन के कहानी मेरी
अब जहाँ पर है शैख़ की मस्जिद
ज़बान-ए-हाल से हम शिकवा-ए-बेदाद करते हैं
दिल की हालत से ख़बर देती है
किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात
करता है ऐ 'असर' दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता का गिला
साथ दुनिया का नहीं तालिब-ए-दुनिया देते