उल्टी क्यूँ पड़ती है तदबीर ये हम क्या जानें
कौन उलट देता है इस राज़ को तदबीर से पूछ
Parveen Shakir
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Gulzar
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Mir Taqi Mir
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अब जहाँ पर है शैख़ की मस्जिद
लोग जब तेरा नाम लेते हैं
गुलशन में कौन बुलबुल-ए-नालाँ को दे पनाह
महफ़िल में उस पे रात जो तू मेहरबाँ न था
दिल की हालत से ख़बर देती है
कुछ समझ कर उस मह-ए-ख़ूबी से की थी दोस्ती
साथ दुनिया का नहीं तालिब-ए-दुनिया देते
जब नहीं कुछ ए'तिबार-ए-ज़िंदगी
हसीनों की जफ़ाएँ भी तलव्वुन से नहीं ख़ाली
मेरे सर में जो रात चक्कर था
इबादत ख़ुदा की ब-उम्मीद-ए-हूर
तुम्हारे आशिक़ों में बे-क़रारी क्या ही फैली है