इबादत ख़ुदा की ब-उम्मीद-ए-हूर
मगर तुझ को ज़ाहिद हया कुछ नहीं
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किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात
ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया
क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या
जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है
मर ही कर उट्ठेंगे तेरे दर से हम
रोते हैं सुन के कहानी मेरी
दिल न देते उसे तो क्या करते
करता है ऐ 'असर' दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता का गिला
बनाते हैं हज़ारों ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ ख़ंजर-ए-ग़म से
ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ
सुब्ह-दम रोती जो तेरी बज़्म से जाती है शम्अ